BS05. साधक-पीयूष || निराश और उदास साधक को साधना में प्रेरित करनेवाले अनमाेल वचनों से युक्त पुस्तक

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साधक-पीयूष 1

निराश और उदास साधक को साधना में प्रेरित करनेवाले अनमाेल वचनों से युक्त पुस्तक का नाम 'साधक-पीयूष' का परिचय

     हमलोग शरीर नहीं, शंरीरधारी अविनाशी तत्त्व जीवात्मा हैं। इसी को बोल-चाल की भाषा में चेतन आत्मा, शरीरस्थ आत्मा, आत्मा, जीव आदि कहा गया है। यह जीवात्मा सृष्टि के आदिकाल से कर्म और काल के चक्कर में पड़कर अपने असली स्वरूप को भूल जाने के कारण अनेक प्रकार के शरीरों को धारण एवं छोड़ने के दुसह दुःखों को भोग रहा है। इन दुःखों से सदा के लिए मुक्ति मिल जाए, इसके लिए परम प्रभु परमात्मा ने असीम अनुकम्पा करके जीव को मनुष्य-शरीर प्रदान किया है। यह मनुष्य-शरीर इतना पूर्णं है कि इसमें ईश्वर-भक्ति करने की सभी सुविधाएँ मौजूद हैं। यह भक्ति गरीब-अमीर, सभी मनुष्य-शरीरधारी कर सकते हैं। दूसरे  शरीरधारी जीव में यह ज्ञान नहीं है कि ईश्वर की भक्ति करके मुक्ति प्राप्त्त कर सके। मनुष्य-शरीर के अतिरिक्त अन्य शरीर को भोग-प्रथान और मनुष्य-शरीर को कमं (योग)-प्रधान बतलाया गया है। मनुष्य-शरीरधारी जीव को मुक्त प्राप्त करने के लिए अवसर प्रदान किया गया है। अगर इस अवसर का लाभ नहीं उठा सकें, तो उस जीव को बरबस भोग-प्रधान शरीर में जाना पड़ जाएगा या भेज दिया जाएगा। अतः मानव शरीर में भक्ति करके में आलस नहीं करना चाहिए। इन्हीं सब बातों की चर्चा इस पुस्तक में विशेष रूप से किया गया है ।   (  ज्यादा जाने  ) 

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‎size/21.5cm/14.5cm/0.5cm/L.R.U.


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साधक-पीयूष
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साधक-पीयूष 1
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