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| रामचरितमानस-सार सटीक |
रामचरितमानस-सार सटीक
रामचरितमानस-सार सटीक- सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी द्वारा रचित एक अनोखा ग्रंथ है, जो रामचरितमानस के गूढ़ रहस्यों, खासकर भक्ति योग और ध्यान (दृष्टियोग) पर केंद्रित है, जिसमें नवधा भक्ति और कागभुशुंडि जी के भजन-साधन की व्याख्या की गई है, ताकि पाठक राम-कथा के साथ-साथ आंतरिक आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकें, काम, क्रोध, लोभ जैसे विकारों को छोड़कर ईश्वर-भक्ति के मार्ग पर चल सकें और आंतरिक साधना (जैसे दृष्टियोग) के माध्यम से मोक्ष पा सकें। संत कवि मेँहीँ की यह दूसरी रचना है। यह 1930 ई0 में भागलपुर, बिहार प्रेस से प्रकाशित हुई थी। इसमें गोस्वामी तुलसीदासजी के रामचरितमानस के 152 दोहों और 951 चौपाइयों की व्याख्या की गयी है। इसका मुख्य लक्ष्य है-स्थूल भक्ति और सूक्ष्म भक्ति के साधनों को प्रकाश में लाना । यह केवल कथा-वाचन नहीं, बल्कि रामचरितमानस के सूक्ष्म आध्यात्मिक अर्थों को स्पष्ट करती है, जो सामान्य पाठ में छिपे रहते हैं। यह पुस्तक रामचरितमानस के ऊपरी कथा-सार से आगे बढ़कर, उसके आंतरिक आध्यात्मिक ज्ञान और ध्यान-साधना (दृष्टियोग) के व्यावहारिक पक्ष को उजागर करती है, जिसे पढ़कर साधक अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
प्रभु प्रेमियों ! संत कवि मेँहीँ की यह दूसरी रचना है। यह 1930 ई0 में भागलपुर, बिहार प्रेस से प्रकाशित हुई थी। इसमें गोस्वामी तुलसीदासजी के रामचरितमानस के 152 दोहों और 951 चौपाइयों की व्याख्या की गयी है। इसका मुख्य लक्ष्य है-स्थूल भक्ति और सूक्ष्म भक्ति के साधनों को प्रकाश में लानाा है। रामचरितमानस के पूरे कथानक को रखते हुए उनमें जो योग बिषयक मुख्य-मुख्य दोहा, चौपाईयां हैं; उनका वर्णन करके उसकी व्याख्या की गई है । कथा को भी बनाए रखने के लिए उसका सार भाग जोड़ते हुए आगे बढ़ा दिया है। जिससे कथा का भी आनंद और योग विषयक रामचरितमानस में वर्णन का भी विशेष जानकारी प्राप्त होता है। इस उत्तम ग्रन्थ को तो ' रघुवर भगति प्रेम परमिति - सी ' के स्थूल रूप में सर्वसाधारण देखते ही हैं और कुछ लोग इसे ' सद्गुरु ज्ञान विराग जोग के ' के रूप में भी देख रहे हैं । पर इसके दोनों उपर्युक्त स्वरूपों को पूर्ण रूप से कोई बिरले ही देख सकते हैं । क्योंकि भक्ति का स्थूल स्वरूप जितनी सरलता से देखा जा सकता है , उतनी सरलता से उसका सूक्ष्म स्वरूप नहीं दरसता है और योग - विराग आदि को ' मानस ' का जलचर बनाकर ग्रन्थकार ने रखा है । ( ' नव रस जप तप जोग विरागा । ते सब जलचर चारु तड़ागा ॥ ' ) जलचर जल - गर्भ में छिपे रहते हैं और सरलता से देखे नहीं जाते । रामचरितमानस के उपर्युक्त दोनों स्वरूपों का पूर्ण रूप से दर्शन करने के लिए ही मैंने उससे सार - संग्रह करने का प्रयास किया है । इसमें वर्णित योग कठिन हठयोग नहीं है , बल्कि परम सरल भक्ति योग है , जिसका अभ्यास रेचक , पूरक और कुम्भक के द्वारा न होकर रामचरितमानस में वर्णित नवधा भक्ति के द्वारा वा कागभुशुण्डिजी के भजनाभ्यास की रीति से होता है । इन प्रसंगों का वर्णन इसमें समुचित रीति से किया गया है । इसमें वर्णित राम - कथा को सुनने - समझने का जितना ख्याल लोगों में है , उसका शतांश भी इसमें विशद रूप से वर्णित राम के सत्यस्वरूप और उसे पाने के लिए पूरी भक्ति करने का विचार ( उनमें ) नहीं है । यद्यपि गोस्वामीजी ने जन - रुचि को आकर्षित करने के लिए कथानक का सहारा लिया है , परन्तु विद्वज्जन भी इन स्थूल कथाओं में ही उलझे - से रह जाते हैं । बहुत कम विद्वान ही इसकी गहराई में डुबकी लगाने का प्रयत्न करते हैं । संत सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंसजी महाराज ने सन्त - साधना की पूरी अनुभूति का वर्णन रामचरितमानस में पाया है और इसीलिए उन्होंने सर्वजन - कल्याण के लिए इस सुप्रचारित ग्रन्थ में छिपे ज्ञान का उद्घाटन किया है तथा कथानकों का संक्षिप्त वर्णन करते हुए रामचरित के मान - सरोवर में छिपे जलचरों को पकड़ पकड़कर जैसे बाहर ला दिया है और इसका नाम ' रामचरितमानस सार सटीक ' रखा है । ( और जाने )
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