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सभी संतों के सार विचारों को लेकर इसे अपनी साधन - तुला पर रख - परख ' समझा मँहाँ लखा नमूना ' की स्थिति में इनमें समन्वय दशति हुए समाज को सही राह पर चलने की प्रेरणा देने हेतु सदाचार व सत्संग - साधना के प्रचार - प्रसार के लिए संत महर्षि मँहीँ परमहंसजी ने ' संतमत ' को एक संस्थागत सांगठनिक रूप दिया और अपनी कृपा - छाया में सृष्टि के समस्त संतों की एकात्म विचारधारा धरा पर ' अखिल भारतीय संतमत सत्संग महासभा ' नाम्नी एक संस्था का संस्थापन किया । इन्हीं महान संत सद्गुरु महर्षि मँहीँ परमहंसजी महाराज के निज सेवक शिष्य गुरुसेवी स्वामी भगीरथजी महाराज हुए हैं , जिन्होंने अपने गुरु की सन् 1968 ई ० से 1986 ई ० ( संत महर्षि मँहीँ के परिनिर्वाण ) तक अहर्निश सेवा कर , नितांत निजी सेवा कर गुरु - सेवा के क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया । परमाराध्य गुरुदेव इन्हें ' बेटा ' कहकर बुलाते थे तथा गुरुदेव ने इन्हें अनेक अमोघ आशीर्वादों से आप्लावित किया है । इनकी अहर्निश गुरु - सेवा के कारण ही संतमत - जगत् इन्हें ‘ गुरुसेवी ' के नाम से जानता , पहचानता और मानता है । इस महान कार्य में महती योगदान देने हेतु समस्त श्रद्धालु सत्संगियों , पादकीय सलाहकारों , प्रबंधकों एवं संपादक - मंडल को महासभा धन्यवाद ज्ञापित करती है और गुरुदेव से प्रार्थना करती है । कि ऐसे गुरुसेवक संत गुरुसेवी स्वामी भगीरथ महाराज को लंबी स्वस्थ आयु प्रदान करें , ताकि सतमत - सत्संग के प्रचार का संचार इनक द्वारा अनवरत होता रहे और जगत् लाभान्वित हो । पूज्य गुरुसेवी बाबा की 75 वीं जयन्ती वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर इन्हें महासभा की ओर से अनन्त शुभकामनाएँ । जय गुरु !" --अरुण कुमार अग्रवाल। ( महामंत्री महासभा) ( ज्यादा जाने )
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