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आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश की महिमा
जैसे पृथ्वी, अन्न, जल, फल-फूल, खनिज पदार्थ आदि का भंडार है । ठीक इसी तरह आध्यात्मिक धर्मशास्त्र अनेक प्रकार के आध्यात्मिक ज्ञान, भौतिक ज्ञान आदि का भंडार है। राजाओं का नया रथ पुराना हो जाता है, सभी प्राणियों की नयी देह एक न एक दिन पुरानी हो जाती है, लेकिन महापुरुषों का दिया हुआ ज्ञान कभी भी पुराना नहीं होता है। धम्मपद नामक पुस्तक के जरावग्गो में भगवान बुद्ध का वचन है-- जरन्ति वे राजरथा सूचित्ता अथो शरीरम्पि रजं उपेति । सतं च धम्मो न जरं उपेति संतो हवे सब्भि पवेदयन्ति ॥ अर्थात् राजा के सुचित्रित रथ पुराने हो जाते हैं तथा यह शरीर पुराना हो जाता है, किन्तु संतों का धर्म पुराना नहीं होता। संत लोग संतों से ऐसा ही कहते हैं। आध्यात्मिक धर्मशास्त्रों में आध्यात्मिक ज्ञान भरे हुए हैं। यह ज्ञान जीवन के अंदर वह संस्कार डाल देता है, जिससे जीव अंतस्साधना के द्वारा कभी-न-कभी सभी बंधनों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त कर सके। इसी उद्देश्य को लेकर मैं श्रीमद्भागवत पुराण, योगवासिष्ठ, महाभारत, अध्यात्म रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, भगवान बुद्ध और पूज्य गुरुदेव ( महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज) एवं अन्य संतों के उपदेशों में से थोड़ा संकलन कर 'आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश' नामक पुस्तक का रूप दिया है, यद्यपि मेरा यह संकलन करने का प्रयास बहुत अल्प है, फिर भी मुझे विश्वास है कि इसके अध्ययन-मनन करने से आध्यात्मिक लाभ अवश्य होगा। ( ज्यादा जाने )
price/INR120.6(Manprice₹180-33%=120.6)
off/-33%
size/21.5cm/14.5cm/1.7cm/L.R.U.
पूज्यपद गुरुसेवी स्वामी भागीरथ दास जी साहित्य सीरीज की दसवीं पुस्तक BS10 "समय एवं ज्ञान का महत्व" (संकलित) के बारे में जानने के लिए 👉 यहाँ दवाएँ ।
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| आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश |
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| आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश 01 |






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